Tuesday, June 29, 2010


बूंदें कभी हमारी थी.......

बरसात की बूंदों में ताजगी समाई सी लगती है,
बूंदें कभी हमारी थी, मगर आज पराई सी लगती हैं .

कभी इंतजार होता था इनका अपने आँगन में
बचपन की यादों में समाई सी लगती हैं
जुदा हो गई है उन मीठे पलों के साथ ..
लगता है के अपनों से सताई सी लगती है
पहले बिजली की चमक में शरारत सी लगती थी
बादलों के घूँघट में रुलाई सी लगती है
कभी गर्जना के बीच थिरकती थी धरती पर
अब हर वक़्त विरह की शहनाई सी लगती है
मना लूँगा इन बूंदों को विश्वास है खुद पर
बरसेंगी फिर से बिजली के फलक पर
होगा यकीन इन बूंदों को हम पर .
पहले इन बूंदों में जम्हाई सी लगती थी
अब बरसात की ये बूंदें महगाई सी लगती है .....


..........28 /06 /2010 .....9 pm