बूंदें कभी हमारी थी.......
बरसात की बूंदों में ताजगी समाई सी लगती है,
बूंदें कभी हमारी थी, मगर आज पराई सी लगती हैं .
कभी इंतजार होता था इनका अपने आँगन में
बचपन की यादों में समाई सी लगती हैं
जुदा हो गई है उन मीठे पलों के साथ ..
लगता है के अपनों से सताई सी लगती है
पहले बिजली की चमक में शरारत सी लगती थी
बादलों के घूँघट में रुलाई सी लगती है
कभी गर्जना के बीच थिरकती थी धरती पर
अब हर वक़्त विरह की शहनाई सी लगती है
मना लूँगा इन बूंदों को विश्वास है खुद पर
बरसेंगी फिर से बिजली के फलक पर
होगा यकीन इन बूंदों को हम पर .
पहले इन बूंदों में जम्हाई सी लगती थी
अब बरसात की ये बूंदें महगाई सी लगती है .....
6 comments:
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है, ऐसी आशा है कि पुष्प वाटिका के समान सोहित इस ब्लॉग वाटिका में आप अपनी रचनाओं के माध्यम से जन-मन के अन्तर्मन को छू लेगें, अगर हो सके तो राष्ट्रवादी और सामयिक विषयों पर आधारित इस ब्लॉग पर भी कभी दस्तक देवें.........
http://hindugatha.blogspot.com
-----------------------------------------
जो ब्लॉगर अपने अपने ब्लॉग पर पाठकों की टिप्पणियां चाहते हैं, वे वर्ड वेरीफिकेशन हटा देते हैं!
रास्ता सरल है :-
सबसे पहले साइन इन करें, फिर सीधे (राईट) हाथ पर ऊपर कौने में डिजाइन पर क्लिक करें. फिर सेटिंग पर क्लिक करें. इसके बाद नीचे की लाइन में कमेंट्स पर क्लिक करें. अब नीचे जाकर देखें :
Show word verification for comments? Yes NO
अब इसमें नो पर क्लिक कर दें.
वर्ड वेरीफिकेशन हट गया!
----------------------
आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
पूरा पढ़ने के लिए :-
http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html
भारतीय ब्लॉग लेखक मंच
Post a Comment