Saturday, December 4, 2010


रियलिटी के चक्कर में

टेलीविजन पर दिखाने की होड़ मची हुई है। मचे भी क्यों ना। दृश्य माध्यम जो ठहरा। अब क्या दिखाएं कि लोग हमें देखें यह यक्ष प्रश्र लगभग सभी चैनलों का पीछा कर रहा है। इस प्रश्र की खोज में ये बातें सामने आती हैं कि जनता ने अब तक टीवी पर वो क्या नहीं देखा। चलिए इसका जवाब आप भी ढूढि़ए और हम भी। टीवी के लोगों ने तो इसको ढूढऩे में रात दिन एक कर दिया है। बहुत सारे विचार आए भी लेकिन उसे दिखाए कौन । सभ्यता, संस्कृति आड़े आने लगी। ऊपर से सेंसर भी बैठा हुआ है। सेंसर से तो निपट लेगें। उसमें तो अपने ही लोग हैं, प्रगतिवादी सोच वाले, सभ्यता और संस्कृति को समय के साथ परिभाषित करने वाले। समस्या जनता की है। कहीं वो रिजेक्ट न कर दे। जनता को भी इस प्रगतिवादी सोच और संस्कृति के मायने को समझाना पड़ेगा। उन्हे पश्चिम की बातों से रूबरू कराना होगा। फिर उसका सहारा लेकर हम आगे बढ़ेगें। लोगों में इन बातों को देखने की आदत डालनी होगी फिर धीरे धीरे हमें उन्हें दिखाना होगा वो सब जिसे शायद वो टीवी पर, समाज में भी रहकर नहीं देख पातें हैं। सेंसर तैयार, जनता तैयार तो फिर कोर्ट करता रहे ऑर्डर-ऑर्डर। कोई फर्क नहीं पड़ता। पहले टीवी पर हम लोग, नीम का पेड़, महाभारत, रामायण सरीखे सीरियल थे। एक तरफ भीष्म की प्रतिज्ञा का सम्मान होता था वहीं दूसरी तरफ जीवन के व्यावहारिक और सैद्दांतिक पक्ष में धर्म-अधर्म की भूमिकाओं से प्रेरणा पाते थे। अनेकता के मोतियों को एकता के धागे में पिरोता हुआ सीरियल हम लोग भी लोगों में लोकप्रिय था। तब लोग शायद अनपढ़, अज्ञानी थे। अब तो पढ़े लिखों का समाज है। इस समाज ने तो परिभषाएं ही बदल डाली हैं। इस साक्षर समाज के अनुसार अगर 6 को 9 देखने में फायदा हो तो उसे 9 ही देखें। ऐसा लगता है कि पहले विकल्प भी नहीं थे। आज विकल्प है वराईटी है। एक तरफ मुन्नी जैसी ढ़ाबे वाली लडक़ी बदनाम है तो बियर बार की शीला भी काम नही है। अब तो लोगों के पारिवारिक झगड़े भी पुराने हो गए हैं। उसमें कोई ट्विस्ट नही रहा। कहीं से नए तरीकों की प्रेरणा भी नहीं मिल रही है। सास भी कभी बहु थी पुराना हो गया। लेकिन उदास होने की बात नही है। अब बिग बॉस देखिए। वराईटी से भरपूर। नए तरीकों के एक्टिवीटिज, झगड़े, प्यार , षड्यंत्र के साथ। यहां खली हैं तो डॉली भी हैं। सारा हैं तो वीना भी पॉमेला एंडरसन को भी बुलाया गया था। ताकि लोग पश्चिमी सभ्यता के खुलेपन को देखकर ये तय करें कि वो इस मामले में कितने पीछे हैं। अगर घर की छोटी-छोटी घटनाओं को किसी से शेयर करने में शर्म आ रहा हो तो इस लिबास को ऊतार फेंकिये । भला सेलिब्रिटिज ओछी हरकतें कर सकतें हैं तो आप क्यो नहीं। अब तो इन हरकतों को ओछी कहना भी ठीक नहीं होगा। अब घरेलू समस्याओं को भी बेंचा जा सकता है। उसे आपस में सुलझाने की भी जरूरत नहीं। उसे राखी सावंत सुलझाएंगी जिन्हें इसकी विशेषज्ञता हासिल है।
हद
हो गयी फिर भी लोग चुप हैं। देखे जा रहें हैं।

2 comments:

apki lekhan sheli kafi rochak hai. Aapne samjha diya ki, khulepan ko paribhashit karna kitna mushkil hai.
 
टी. वी. पर अब सब कुछ रियलिटी के नाम पर ही चल चला रहे हैं और देश की जनता इनसे पर्याप्त लाभान्वित भी हो ही रही है ।
मैं आपके इस ब्लाग को फालो कर रहा हूँ और आपसे उम्मीद करता हूँ कि आप भी मेरे ब्लाग नजरिया को फालो करें । धन्यवाद सहित..
मेरी नई पोस्ट 'भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार' पर आपके सार्थक विचारों की प्रतिक्षा है...
www.najariya.blogspot.com
 

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